CBSE के छात्रों पर गाज! SGFI के फैसले ने छीने राज्य खेलों के मौके

एक ऐसा फैसला जो हजारों युवा सपनों को कर सकता है प्रभावित  

बिलासपुर/छत्तीसगढ़। सीबीएसई स्कूलों के लाखों खिलाड़ी छात्रों के लिए साल 2025-26 एक बड़ी चुनौती लेकर आ रहा है। स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SGFI) के एक कड़े फैसले ने उन्हें राज्य सरकारों द्वारा आयोजित होने वाले विकासखंड, जिला, संभाग और राज्य स्तरीय स्कूल खेल प्रतियोगिताओं से वंचित कर दिया है। इसका मतलब है कि अब ये होनहार खिलाड़ी अपने ही राज्य के भीतर इन महत्वपूर्ण स्तरों पर अपना हुनर नहीं दिखा सकेंगे।

  क्या है पूरा मामला? (फैसले की जड़ में है 'स्वतंत्र इकाई' का दर्जा)  

  •  SGFI का ऐतिहासिक कदम: 2024-25 में ही SGFI ने अपनी 68वीं राष्ट्रीय स्कूल खेल प्रतियोगिताओं में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) को एक पूर्णतः स्वतंत्र खेल इकाई के रूप में मान्यता दे दी थी। इससे पहले, CBSE बोर्ड के छात्र अपने संबंधित राज्यों की टीमों के हिस्से के रूप में इन प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे।  
  •  अस्थायी छूट का अंत: पिछले साल, जब CBSE का अपना पूर्ण विकसित खेल ढांचा तैयार नहीं था, तो कुछ राज्य सरकारों (जैसे छत्तीसगढ़) ने छात्र हितों को ध्यान में रखते हुए CBSE के खिलाड़ियों को राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने की अस्थायी छूट दी थी।  
  •  नए नियम, नई पाबंदियाँ: अब जबकि CBSE ने अपना स्वतंत्र खेल चयन व संचालन तंत्र विकसित कर लिया है, SGFI के नियमों के अनुसार, उनके छात्र अब सीधे तौर पर राज्य सरकारों द्वारा आयोजित शाला स्तर से राज्य स्तर तक की किसी भी खेल प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकेंगे। यह नियम 2025-26 के शैक्षणिक सत्र से प्रभावी होगा।  

  खिलाड़ियों पर क्या पड़ेगा असर? (सपनों पर मंडराता संकट)  

  •  प्रदर्शन के मंच सिमटे: इस फैसले का सबसे बड़ा और सीधा असर CBSE स्कूलों के उन हज़ारों खिलाड़ियों पर पड़ेगा, जो अब तक ब्लॉक, जिला और संभाग स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर न सिर्फ अनुभव हासिल करते थे, बल्कि अपनी प्रतिभा को रेखांकित भी कर पाते थे। बिलासपुर जैसे शहरों के कई होनहार खिलाड़ी, जिन्होंने पिछले वर्षों में इन स्तरों पर शानदार प्रदर्शन किया है, अब इस अवसर से वंचित रह जाएंगे।  
  •  राष्ट्रीय स्तर तक पहुँच का संकरा रास्ता: अब CBSE के खिलाड़ियों के लिए SGFI राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने का एकमात्र रास्ता सीधे CBSE द्वारा आयोजित अपनी राष्ट्रीय स्तर की चयन प्रक्रिया से गुजरना होगा। यह द्वार पहले की तुलना में काफी संकरा है:  
  •  कम अवसर: राज्य स्तर तक की लंबी छननी प्रक्रिया में कई चरणों में खिलाड़ी अपनी क्षमता दिखा सकते थे और सुधार कर सकते थे। अब सीधे राष्ट्रीय स्तर की चुनौती के लिए चयनित होना कहीं जटिल होगा।  
  •  दबाव बढ़ा: एक ही प्रदर्शन पर सब कुछ निर्भर होगा, जिससे युवा खिलाड़ियों पर मानसिक दबाव बढ़ सकता है।  
  •  टैलेंट आइडेंटिफिकेशन प्रभावित: राज्य स्तर की प्रतियोगिताएँ प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को खोजने और निखारने का एक बड़ा प्लेटफॉर्म थीं। इस स्तर से गायब होने से कई छिपी हुई प्रतिभाओं के राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचने की संभावना कम हो सकती है।  
  •  भविष्य की चिंता: कई छात्र-खिलाड़ी और उनके माता-पिता/प्रशिक्षक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस सीमित अवसर के कारण उनके खेल करियर, विशेषकर राज्य स्तरीय पहचान और संभावित स्कॉलरशिप के अवसर प्रभावित होंगे।  

  क्यों लिया गया ऐसा फैसला? (प्रशासनिक तर्क बनाम जमीनी हकीकत)  

SGFI और राज्य शिक्षा विभागों (जैसे छत्तीसगढ़) का तर्क स्पष्ट है:  

1. स्वतंत्र इकाई का दर्जा: एक बार CBSE को स्वतंत्र इकाई का दर्जा मिल जाने के बाद, SGFI के नियमों के अनुसार, उनके खिलाड़ी अब राज्य संघों के अंतर्गत नहीं आते।  

2. स्वयं का ढांचा: CBSE ने अब अपना खेल चयन व संचालन ढांचा स्थापित कर लिया है, इसलिए उन पर राज्यों की प्रक्रियाओं पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।  

3. प्रतियोगिता में स्वतंत्र भागीदारी: SGFI की वेबसाइट के अनुसार, CBSE के छात्रों ने 2024-25 की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पहले ही स्वतंत्र इकाई के रूप में सफलतापूर्वक भाग लिया और पदक भी जीते, जो उनकी क्षमता का प्रमाण है।  

हालाँकि, खिलाड़ियों और कोचों की नज़र में: यह फैसला प्रशासनिक सुविधा को तो पूरा कर सकता है, लेकिन यह जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों के विकास के लिए बने व्यापक पिरामिड को कमजोर करता है। राज्य स्तर की प्रतियोगिताएँ न सिर्फ प्रतिस्पर्धा का स्तर बढ़ाती थीं, बल्कि विभिन्न स्कूल बोर्डों (राज्य बोर्ड, CBSE, ICSE) के खिलाड़ियों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और आदान-प्रदान का माहौल भी बनाती थीं।  

  आगे की राह क्या? (सवाल और संभावनाएं)  

  •  क्या CBSE तैयार है? सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या CBSE इतने बड़े दायरे (पूरे देश में फैले स्कूलों) में एक ऐसी कुशल, पारदर्शी और व्यापक चयन प्रक्रिया विकसित कर पाएगी, जो राज्य स्तर की छूटी हुई भूमिका को पूरा कर सके और वाकई सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा सके?  
  •  वैकल्पिक मंचों की जरूरत: CBSE को अपने स्तर पर ब्लॉक, जिला, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं के आयोजन को और मजबूत व सुलभ बनाना होगा।  
  •  संवाद की आवश्यकता: खिलाड़ियों और कोचों की चिंताओं को सुनते हुए, SGFI और CBSE को इस नई व्यवस्था के क्रियान्वयन और उसके प्रभावों पर निरंतर संवाद बनाए रखने की जरूरत है।  
  •  दीर्घकालिक प्रभाव: यह देखना होगा कि क्या यह फैसला भारत में स्कूल स्तर के खेलों के विकास को गति देगा या फिर एक बड़े खिलाड़ी समुदाय को महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी अनुभव से वंचित करके उनके सपनों पर पानी फेर देगा।  

  निष्कर्ष: 

SGFI का CBSE को स्वतंत्र इकाई मानने का फैसला संभवतः संगठनात्मक स्पष्टता लाने के लिए है। लेकिन, इसका ठेठ प्रभाव उन युवा खिलाड़ियों पर पड़ रहा है जिनके लिए राज्य स्तर की प्रतियोगिताएँ सीढ़ियों का काम करती थीं। अब CBSE पर भारी जिम्मेदारी है कि वह अपने खेल ढांचे को इतना मजबूत, समावेशी और प्रभावी बनाए कि हर होनहार खिलाड़ी को न्याय मिल सके और कोई प्रतिभा सिर्फ इसलिए पीछे न रह जाए क्योंकि उसका स्कूल एक केंद्रीय बोर्ड से संबंधित है। आने वाला समय बताएगा कि यह बदलाव भारतीय स्कूल खेलों के लिए वरदान साबित होता है या एक बड़ी चुनौती।

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