लोन की किस्त नहीं भरने वाले ऋणदाताओं को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत: बैंकों को जारी हुए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने ऋणदाताओं को दी बड़ी राहत: फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों को देना होगा मौका 

सुप्रीम कोर्ट ने ऋणदाताओं को दी बड़ी राहत

आज के दौर में बैंकों से लोन लेना आम बात है। चाहे घर खरीदना हो, कार लेनी हो या व्यापार बढ़ाना हो, लोग अपनी ज़रूरतों के लिए ऋण का सहारा लेते हैं। मगर, कभी-कभार आर्थिक मुश्किलों या अन्य वजहों से लोन की किश्तें (EMI) चुकाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में बैंक अक्सर बिना सुनवाई के ही लोन अकाउंट को "फ्रॉड" यानी धोखाधड़ी वाला घोषित कर देते थे। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया में बदलाव करते हुए कर्जदारों के हित में अहम फैसला सुनाया है।  


 सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्देश: "कर्जदार को दें अपना पक्ष रखने का मौका"  

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बैंक किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड श्रेणी में डालने से पहले कर्जदार को नोटिस देकर उसकी बात सुनें। कोर्ट के मुताबिक, बिना सुनवाई के ऐसा करना न्यायिक सिद्धांतों के खिलाफ है। साथ ही, यह भी कहा गया कि फ्रॉड घोषित करने के लिए पहले FIR दर्ज होना ज़रूरी नहीं है।  


यह फैसला हज़ारों उन लोगों के लिए राहत भरा है जो बैंकों की एकतरफा कार्रवाई से परेशान थे। अक्सर, फ्रॉड का टैग लगते ही कर्जदार का CIBIL स्कोर गिर जाता है, जिससे भविष्य में लोन मिलने की संभावना खत्म हो जाती है।  


 फ्रॉड का टैग क्यों है खतरनाक? CIBIL स्कोर पर पड़ता है भारी असर  

जब बैंक किसी अकाउंट को फ्रॉड बताते हैं, तो क्रेडिट ब्यूरो (जैसे CIBIL) को इसकी सूचना दी जाती है। इससे व्यक्ति का क्रेडिट स्कोर 300-400 के आसपास गिर सकता है, जबकि अच्छा स्कोर 750+ माना जाता है। नतीजतन:  

- भविष्य में होम लोन, कार लोन या बिज़नेस लोन मिलना मुश्किल हो जाता है।  

- क्रेडिट कार्ड और अन्य वित्तीय सुविधाएं बंद हो सकती हैं।  

- नौकरी या रेंटल एग्रीमेंट में भी दिक्कत आ सकती है।  


सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कहा कि बैंकों को "प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत" का पालन करना होगा। यानी, किसी भी निर्णय से पहले कर्जदार को स्पष्टीकरण देने और सबूत पेश करने का अधिकार मिलेगा।  


 तेलंगाना-गुजरात HC के फैसले को मिला समर्थन, RBI के नियम भी हुए मजबूत 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में तेलंगाना और गुजरात हाई कोर्ट के पुराने आदेशों को भी सही ठहराया। इन कोर्ट्स ने RBI के 2016 के मास्टर सर्कुलर की व्याख्या करते हुए कहा था कि बैंक "जानबूझकर डिफॉल्ट" करने वालों (Wilful Defaulters) को सीधे फ्रॉड नहीं कह सकते।  


RBI के नियमों के मुताबिक, फ्रॉड की श्रेणी में केवल उन्हीं मामलों को रखा जाना चाहिए जहां धोखाधड़ी का सबूत हो, जैसे कागजात में हेराफेरी या झूठे दस्तावेज। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि सिर्फ EMI न चुकाने को फ्रॉड नहीं माना जा सकता।  


 क्या होगा अब? बैंकों को बदलनी होगी प्रक्रिया  

- बैंकों को फ्रॉड घोषित करने से पहले कर्जदार को 15-30 दिन का नोटिस देना होगा।  

- कर्जदार अपने बचाव में दस्तावेज और तर्क पेश कर सकेंगे।  

- अगर बैंक का फैसला गलत लगे, तो कर्जदार कोर्ट या बैंकिंग ओम्बड्समैन के पास जा सकते हैं।  


इस फैसले से न केवल आम लोगों, बल्कि छोटे व्यापारियों को भी मदद मिलेगी, जो COVID जैसे संकटों में लोन चुकाने में असमर्थ रहे हैं।  


निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट का यह कदम वित्तीय न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह सुनिश्चित करेगा कि बैंक "फ्रॉड" जैसे गंभीर आरोप लगाने से पहले पारदर्शी तरीका अपनाएं और कर्जदारों को उनके अधिकार मिलें।

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